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बुद्ध अनूठे हैं. ध्रुवतारे हैं. तारे तो बहुत हैं लेकिन ध्रुवतारा एक है. बुद्ध ध्रुवतारे जैसे हैं. उनके साथ मनुष्य की चेतना के इतिहास में एक नए अध्याय का सूत्रपात हुआ. कृष्ण ने जो कहा, वह पहले से कहा जाता रहा. उसमें नया कुछ भी न था. क्राइस्ट ने जो कहा , वह पुराने की ही नयी व्याख्या थी, लेकिन सत्य पुराने थे. अति प्राचीन थे. महावीर ने जो कहा , उसे महावीर के पहले तेईस और तीर्थंकर दोहरा चुके थे. जोड़ा- बहुत जोड़ा – लेकिन नये का कोई जन्म नहीं था. बुद्ध के साथ कुछ नए का जन्म हुआ. बुद्ध के साथ एक क्रान्ति उतरी मनुष्य की चेतना में.
यह ओशो के प्रवचन का एक अंश है. इस अंश को जोड़ने की बात मैं बाद में करूंगा. दरअसल मैं जहां रहता हूँ वहां से सिर्फ ५२ किलोमीटर की दूरी पर कुशीनगर में बुद्ध को निर्वाण प्राप्त हुआ. ८० किलोमीटर दूर कपिलवस्तु है जहां उनका आविर्भाव हुआ. इस दूरी के बीच एक नदी बहती है. पहले उसे अनोमा के नाम से जानते थे. अब वह आमी कहलाती है. वैराग्य के लिए यही नदी राजकुमार सिद्धार्थ की प्रेरक बनी. सिद्धार्थनगर जिले के सोह्नारा में राप्ती नदी की छाडन से निकल कर यह गोरखपुर जिले के सोहगौरा में राप्ती नदी में ही मिल जाती है. जब जीवन के प्रश्नों ने राजकुमार सिद्धार्थ को व्याकुल कर दिया और जवाब की तलाश में अपनी पत्नी और बच्चे को छोड़ घर से निकले तो पहली बार इसी नदी के तट पर उनके कदम ठिठके. उन्होंने अपने राजसी वस्त्र उतारे, केश को काट दिया और सब कुछ सारथी को सौंप कर ज्ञान की खोज में चल पड़े. यह नदी उनके संकल्पों की साक्षी बनी. इसी नदी के तट पर मगहर में अपने आख़िरी दिनों में कबीर दास आये. यहाँ उनकी मजार और समाधि दोनों है. अभी गुजरे २ अक्टूबर को मगहर में गुरूद्वारा भगत कबीर की बुनियाद रखी गयी. आमी नदी गाँव की गंगा की तरह थी. इधर दो दशक में इस नदी को औद्योगिक इकाइयों के अपजल से प्रदूषित कर दिया गया. विकास की रफ़्तार में सदियों की गौरव गाथा समेटने वाली आमी को बदरंग कर दिया गया. तीन जनवरी से इस नदी की मुक्ति के लिए एक अभियान शुरू किया गया. . इस बीच मैं नदी तट पर बसे गाँवों में गया. वहां लोगों की पीडा देखी. जिल्लत भरी जिन्दगी और लोगों को दुखों का पहाड़ उठाते देखा. आमी नदी जिसका रिश्ता लोगों के चौके और चूल्हे से था उसे टूटते और दरकते देखा. मैंने देखा कि प्यास और सांस दोनों पर पहरा लगा दिया गया है. गाँवों के अन्दर घुसने पर दुनियादारी की किचकिच साफ़ साफ़ सुनी. दुबले, मर्झल्ले और नंगे बच्चों की चीख सुनी. कच्ची दारू के सुरूर में निठल्ले हो चुके उनके बापों के खौफ की आंच में अदहन सी खौलती उनकी माँओं की कातर पुकार भी सुनी. आमी की तरह उन औरतों को भी तड़पते देखा जो सेवार, जलकुम्भी और मरे हुए जानवरों के दुर्गन्ध के बीच सिसक सिसक कर जी रही हैं. रोग की जकड में फंसे हुए लोगों की कराह भी सुनी. ३ जनवरी २००९ से दैनिक जागरण ने नदी की पीड़ा कम करने के लिए अभियान चलाया. लगातार इस नदी की पीडा को शब्दों की शक्ल दे रहा हूँ. पर मेरी आवाज इस आंचलिक परिधि से बाहर नहीं निकल रही है.
ओशो की बात मैंने इसीलिये की क्योंकि- बुद्ध ने दुनिया को बहुत कुछ दिया. ओशो ने बुद्ध को नए ढंग से समझा. अभी भी अपने घर में बुद्ध का भले अपेक्षित मान नहीं लेकिन दुनिया उन्हें पूज रही है. आमी उनकी यादों की एक धरोहर है. बुद्ध लेह के किसी मठ के पास सूट कातते बच्चों या और किसी तरह अपने होने का अहसास कराते हो, किसी को उनकी यादों में डूबने के लिए समय के ठहरने की आकांक्षा हो तो मुझे लगता है कि यह तो संवेदना की पराकाष्ठा है. अगर आमी तट के गाँवों में जहां सरकारी तंत्र कभी नजर नहीं डालता, जहां जनप्रतिनिधि उद्यमियों के प्रभाव में अपने होठ पर ताला डाले पड़े हैं, वहां एक नजर ऐसी चाहिए जो बुद्ध को समझ सके. जो चेतना की यात्रा को समझ सके. जो इस ठहराव को समझ सके और यह भी समझ सके कि अब सडन बर्दाश्त के बाहर हो गयी है. यकीन जानिए अगर कभी फुरसत लेकर आपने पल-दो-पल इस मैले हो चुके आमी के आँचल को छूने की कोशिश की तो एक नये बुद्ध का साक्षात्कार होगा.
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