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फिर अपनी औकात दिखाने लगे प्रचंड

अनुभूति
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सरहद पर आयोजित एक सभा में प्रचंड ने पीलीभीत को नेपाल का हिस्सा बताया, तब उनके मन में यह भाव जरूर रहा होगा कि उनका यह हथियार सही निशाने पर बैठेगा. उनके हाथ से रेत की तरह फिसल रहे माओवादी फिर उन्हें कंधे पे बिठा लेंगे. उनका यह हथियार चल नहीं पाया. माओवादी लड़ाके हैरत में पड़ गए. उन्हें तो खुद समझ में नहीं आया कि पुष्प कमल दहल क्या बोल रहे हैं. माओवादियों के लोकप्रिय नेता बाबुराम भट्टराई ने तो एक संवाददाता को दिए गए साक्षात्कार में प्रचंड की आलोचना कर दी. साफ़ कह दिया कि भारत के खिलाफ बोलने से कुछ नहीं होगा. प्रचंड को अपनी नाकामयाबी पर झुंझलाहट हुई और उन्होंने नया तीर निकाल लिया.
सोमवार को प्रेस ट्रस्ट को दिए गए बयान में उन्होंने कहा कि हमें भारत की भूमिका पर संदेह है. हालांकि  यह कहते हुए उन्होंने थोड़ी सी चतुराई दिखाई और यह भी कहा कि मैं यह नहीं कह रहा कि पूरा भारत माओवादियों के खिलाफ है. लेकिन नौकरशाहों में या खुफिया एजेंसियों में और राजनीतिक नेतृत्व में यह धारणा हो सकती है. उनका कहना है कि शांति प्रक्रिया और संविधान की रूपरेखा तय करने में भारत का पर्याप्त समर्थन नहीं मिला. उनका कहना है कि  भारत का यह रूप इसलिए देखने को मिला क्योंकि उसे चुनावों में माओवादियों का उभरकर आना गंवारा नहीं था. अब वे अपनी चिंताओं पर भारत के साथ उच्च स्तरीय राजनीतिक वार्ता करना चाहते हैं. ऊंट पहाड़ के नीचे आ गया है. पर यह प्रचंड के तरकश का ऐसा तीर है जिसके जरिये वे मावोवादियों के दिल में जगह बनाने की कोशिश कर रहे हैं. लम्बे समय से उनके इशारे पर सिर्फ नकारात्मक गतिविधियों को अंजाम दे रहे नेपाल के माओवादी थक गए हैं. वे बाबुराम भट्टराई जैसे नेता की अगुवाई में कुछ करना चाहते हैं. माओ लड़ाकों की कितनी टीमें प्रचंड को ठेंगा दिखाकर अपना अस्तित्व बना चुकी हैं, इसका अंदाजा तराई क्षेत्र में लगता है. मजे की बात तो यह है कि जब प्रचंड को सत्ता मिली तो उन्होंने सिर्फ अपनी ताकत बढ़ाने की  सोची. लोग अभी भूले नहीं होंगे. बारा क्षेत्र से चुनाव जीतने वाले जाली नोटों के कारोबारी यूनुस अंसारी के अब्बा हुजूर और नेपाल के राजा ज्ञानेंद्र वीर विक्रम शाह की सरकार में मंत्री पद की शपथ लेने वाले सलीम मियाँ अंसारी को २००७ में सत्ता पलटते ही गिरफ्तार किया गया था. फिर उन्हें छोड़ दिया गया. सलीम मियाँ छूटने के बाद निरंतर ताकतवर होते गए. उन्हें किसने ताकत दी. बहुत से लोग जानते हैं कि प्रचंड से उनका अंदरूनी गठजोड़ हो गया. पर इस बात को बहुत ही सलीके से छुपाया गया. माओवादी जानते हैं कि चांदी के पलंग पर सोने वाले और सोने के चम्मच से खाने वाले प्रचंड उनका हित नहीं सोच सकते हैं.

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