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वीर फिल्म के बहाने खुल गए इतिहास के पन्ने

अनुभूति
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वीर फिल्म के बहाने इतिहास के पन्ने खुल गए. इतिहास और किम्वदंतियों को जोडकर  मैंने एक रपट लिखी जो चर्चा में आ गयी. मेरे एक आदरणीय हैं जिन्होंने मुझे इस खबर के लिए प्रेरित किया. कभी मैं उनका नाम बताउंगा. ऐसी कई ख़बरों के लिए मैं उनका शुक्रगुजार हूँ. मैं इस रपट को तैयार करते समय बेहद भावुक था. सिर्फ इसलिए कि वीर फिल्म चर्चा में है और यह रपट भी मुझे चर्चा में रखेगी. इस ठण्ड में जूनून के साथ मैं गोरखपुर में पिंडारियों और उनके वंश को तलाश करने लगा. चार दिन पहले ११ बजे सुबह मेरा प्रयास शुरू हुआ और लगभग २५ लोगों से बातचीत के बाद मध्यकालीन इतिहास विभाग के प्रवक्ता डाक्टर ध्यानेन्द्र नारायण दुबे ने क्लू दिया. पता चला कि मदीना मस्जिद के पास पिंडारी बिल्डिंग है. वहां कुछ जानकारी मिल  सकती है. मदीना मस्जिद के पास गया तो किसी को पिंडारी बिल्डिंग के बारे में पता नहीं था. एक बुजुर्ग चाचा ने मेरी समस्या हल कर दी. उन्होंने बताया कि लुटेरों के सरदार के वारिसों की बिल्डिंग में ही इलाहाबाद बैंक है. मैं पहुंचा तो वहां नीचे  दुकाने थी. ऊपर बैंक था. थोड़ा सहमते हुए सबसे उपरी मंजिल पर पहुँच गया. एक छोटे से बंगले में एक परिवार के रहने की आहात मिली. वहां  माबूद करीम खान मिले. पहले तो मुझे टालने लगे. अखबार वालों के बारे में उनकी धारणा कुछ ठीक नहीं थी. पर मेने अनुरोध  के बाद उन्होंने अपने पूर्वजों की कहानी बतायी. यह पूछना थोड़ा असहज था कि पिंडारी लुटेरे थे. पर मेरे पूछने पर उन्होंने इतिहासकारों को कटघरे में खडा कर दिया. फिर गोरखपुर विश्वविद्यालय मध्यकालीन इतिहास विभाग  के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर ए.के श्रीवास्तव से बात हुई. विशेषग्य के तौर पर प्रोफ़ेसर रिजवी से बातचीत की. बस एक सिलसिला शुरू हो गया. पिंडारी परिवार के मुखिया  सिकरीगंज में रहने वाले रहमत करीम खान से भी मैंने  बात की. मेरी रपट तैयार हो गयी. आभारी हूँ अपने संस्थान के सम्पादकीय विभाग के सभी साथियों का जिन लोगों ने रुचि लेकर खबर को बेहतर ढंग से लगाया. सुबह माबूद का फोन आया तो अखबार वालों के बारे में उनकी धारणा बदली थी. हालांकि उन्होंने यह जरूर कहा कि बड़ी सफाई से आपने हमारे पूर्वजों को लुटेरा लिखा दिया. पर वे खुश थे. फिर तो फोन का सिलसिला चल पडा. मैं भी खुश हूँ. आप भी पढ़िए इस रपट को.

ये हैं “वीर” के असल वीर

गोरखपुर [आनन्द राय]। पिंडारियों की साहसिक गाथा को प्रदर्शित करने वाली सलमान खान की फिल्म ‘वीर’ 22 जनवरी को देश भर में रिलीज हो रही है। इसी वजह से पिंडारियों के प्रति लोगों की जिज्ञासा बढ़ गई है। आज भी यह कौम अपनी पताका फहरा रही है। पिंडारियों के सरदार करीम खां की मजार गोरखपुर जिले के सिकरीगंज में उनकी बहादुरी की प्रतीक बनी हुई है, जबकि उनके वारिस पूरी दिलेरी से दुनिया के साथ कदमताल कर रहे हैं। यानी यहां हैं ‘वीर’ के वीर।

गोरखपुर शहर में मदीना मस्जिद के पास 60-65 साल पुरानी पिंडारी बिल्डिंग है, इसके मालिक पिंडारियों के सरदार करीम खां की पांचवीं पीढ़ी के अब्दुल रहमत खां हैं। वे अपनी बिरादरी के अगुवा भी हैं। उनका कारोबार सिकरीगंज से लेकर गोरखपुर तक फैला है। उनके भाई अशरफ कनाडा में इंजीनियर हैं। दैनिक जागरण से बातचीत में वे अपने पूर्वजों की वीरता की कहानी सुनाकर अपने वजूद का अहसास कराते हैं।

वे बताते हैं कि एक समझौते के तहत अंग्रेजों ने पिंडारियों के सरदार करीम खां को 1820 में सिकरीगंज में जागीर देकर बसाया। सिकरीगंज कस्बे से सटे इमलीडीह खुर्द के ‘हाता नवाब’ से सरदार करीम खां ने अपनी नई जिंदगी शुरू की। इंतकाल के बाद वे यहीं दफनाए गए। शब-ए-बारात को सभी पिंडारी उनकी मजार पर फातेहा पढ़ने आते हैं। पांचवीं पीढ़ी के ही उनके एक वंशज माबूद करीम खां पिंडारी मेडिकल स्टोर चलाते हैं। उनको यह सुनना गंवारा नहीं है कि उनके पूर्वज लुटेरे थे। वे इसे ऐतिहासिक तथ्यों की चूक बताते हैं। उनका कहना है कि हमारे पूर्वजों ने अन्याय और अत्याचार का मुकाबला किया। सरदार करीम की वंश बेल सिकरीगंज से आगे बढ़कर बस्ती और बाराबंकी तक फैल गई है।

गोरखपुर विश्वविद्यालय के मध्यकालीन इतिहास विभाग के प्रो. सैयद नजमूल रजा रिजवी का कहना है कि मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र में लुटेरे पिंडारियों का एक गिरोह था, जिन्हें मराठों ने भाड़े का सैनिक बना लिया। मराठों के पतन के बाद वे टोंक के नवाब अमीर खां के लिए काम करने लगे। नवाब के कमजोर होने पर पिंडारियों ने अपनी जीविका के लिए फिर लूटमार शुरू कर दी। इससे महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में शांति व्यवस्था मुश्किल हो गई। फिर लार्ड वारेन हेस्टिंग ने पिंडारी नियंत्रण अभियान चलाया। उसी कड़ी में सरदार करीम खां को सिकरीगंज में बढ़यापार स्टेट का कुछ हिस्सा और 16 हजार रुपये वार्षिक पेंशन देकर बसाया गया। करीम खां के भतीजे नामदार को अंग्रेजों ने भोपाल में बसाया। पिंडारियों के कारनामों पर इतिहासकार एसएन सेन और जीएस सरदेसाई ने भी काफी कुछ लिखा है। इतिहासकारों ने उन्हें कबीलाई लुटेरा करार दिया है। उनके मुताबिक पिंडारी अलग-अलग जातियों का एक समूह था, जिनके सरदारों में चित्तू, करीम और वसील मुहम्मद प्रमुख थे। यह भी कहा जाता है कि पिंडा नामक नशीली शराब का सेवन करने से इस कौम को पिंडारी कहा जाने लगा।

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