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उनका काम है अहले सियासत, मेरा पैगाम मोहब्बत है जहां तक पहुंचे। कुछ इसी तरह का टोन चंदौली मूल के तुलसी सिंह राजपूत का रहा। वाराणसी दैनिक जागरण के संपादकीय प्रभारी श्री राघवेन्द्र चड़ढा जी के हवाले से वे मुझसे टेलीफोन पर बतिया रहे थे। जागरण जंक्शन पर उन्होंने मेरा आलेख- कोई नहीं समझ रहा पूर्वांचल का दुख पढा । काफी भावुक थे। पिछले लोकसभा चुनाव में मुझे उनकी सियासी गतिविधियां पता चली थीं। ओमप्रकाश राजभर की भारतीय समाज पार्टी से लोकसभा चुनाव में चंदौली क्षेत्र से चुनाव लडे थे। अब पूर्वांचल को लेकर बुनियादी स्तर पर कुछ करना चाह रहे हैं। उन्होंने अपनी कई प्राथमिकताएं गिनायी लेकिन जो बात मेरे मन को छू गयी उसका जिक्र जरुरी समझ रहा हूं। मुम्बई, पूर्वांचल, बिहारी, माई नेम इज खान और शाहरुख को लेकर आजकल खूब बहस चल रही है। बाला ठाकरे की दादागिरी से आहत लोग अपनी अपनी भावनाओं को उडेल रहे हैं। बाला साहब से सब गुस्से में हैं। पर तुलसी सिंह का गुस्सा दूसरी तरह है। वे कहते हैं कि हम मुम्बई क्यों जाते हैं। रोजगार के लिए। किस हाल में रहते, यह किसी से छिपा नहीं है। अगर हम अपनी मिट़टी में रोजगार पैदा करेंगे और युवाओं को आत्मनिर्भर बना देंगे तो हमारी पूंजी बाला ठाकरे के यहां क्यों जायेगी। उनकी मानें तो चंदौली में उन्होंने अपनी जमानत पर युवाओं को 5 से 25 लाख रुपये तक लोन दिलवाना शुरू किया है। वे उद़योग भी खोल रहे हैं। मैं नहीं कहता कि इससे तत्काल पूर्वांचल की गरीबी मिट जायेगी या वहां जाने वाले युवाओं की रफ़तार कम हो जायेगी लेकिन यह तो जरूर कहूंगा कि एक सिलसिला शुरू होगा । आत्मनिर्भर बनने की राह में एक बुनियाद पडेगी। बचपन से हम सब पढते लिखते आ रहे हैं , अंधकार को क्यों धिक्कारें, अच्छा है एक दीप जला लें। दीप जलाने की गुंजाइश तो सबके पास है लेकिन पहल कहां हो रही है। और अगर तुलसी सिंह जैसे कुछ लोग आगे बढ रहे हैं तो पूर्वांचल की ओर से उनका स्वागत होना चाहिये। यकीनन अंधेरा प्रकाश का विकल्प नहीं है। अंधेरा तो प्रकाश का अभाव है। एक माचिस की तीली जलती है तो अंधेरे का साम्राज्य समाप्त हो जाता है। बाला साहब जैसे लोगों के लिए यह मोहब्बत का पैगाम ही है कि हम अपनी जमीन को मुम्बई बना देंगे। हम आपको धिक्कारेंगे नहीं बल्कि आपके काले मन को मोहब्बत का दिया जलाकर उजला कर देंगे। हम विकास की रफ़तार में इतने तेज दौड जायेंगे कि आपके पास सियासत के लिए कोई मुद़दा ही नहीं बचेगा। चमकती हुई बम्बई को बम्बई किसने बनाया। धारावी के स्लम एरिया से लेकर नरीमन प्वाइंट की गगनचुम्बी इमारतों के बीच चेहरे तलाशिये तो एक तिहाई पूरबिये मिलेंगे। यूपी बिहार के भइया कहे जाने वालों ने ही बम्बई का चेहरा बदला है। जो खूबसूरती दिखती है वह यहीं के लोगों के खून पसीने से निकली है। इन लोगों की फौलादी हिम्मत और बहुत कुछ अच्छा कर देने के जुनून ने ही इतिहास रचा है। यह जुनून सिर्फ अपने घर में ही तो नहीं हो पाया वरना मारीशस, पिफजी, सूरीनाम तक पहुंच कर यही भाई शासन की बागडोर अपने हाथ में ले लिये। सकारात्मक पहल से ही हम मुकाबला कर सकते हैं। बयानबाजी, झूठे नारे, जनता को भ्रम में रखकर वोट की खेती और तीन तिकडम से राजनीति करने वालों ने बाला साहब जैसे लोगों को पनपने का मौका दिया है। इसी ब्लाग पर शरद पाण्डेय ने कहा कि हम पूर्वांचल के लिए कुछ करना चाहते हैं। हमने उनका भी स्वागत किया है। स्वागत तो उन सबका है जो विचारों से प्रतिबद़ध होकर कुछ करने की तमन्ना रखते हैं। पर सबको एक जगह एकत्र होना होगा। वैचारिक धरातल पर एक कारगर योजना बनाकर पहल करनी पडेगी। विश्वविद़यालयों और महाविद़यालयों के छात्रसंघों की अगुवाई करने वाले युवा नेता अब ठेकों में रुचि ले रहे हैं, उनके लिए भी सुनहरा अवसर है कि वे आगे बढकर अपने हक हकूक के लिए लडाई लडे। दुष्यंत के उन्हीं शब्दों को दुहरा रहा हूं जिसे लोग बार बार दुहराते हैं- हो गयी है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिये, इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिये। सिर्फ हंगामा खडा करना मेरा मकसद नहीं, मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिये।
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