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नेपाल की मीडिया में कहीं इंटरनल गैंगवार तो नहीं

अनुभूति
अनुभूति
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नेपाल में होली की शाम जनकपुर टुडे के प्रकाशक अरुण सिंघानियां की गोली मारकर हत्‍या कर दी गयी। मेरे एक दो मित्रों ने मुझे फोन किया और पिछली घटनाओं से मामले को जोडने लगे। लोग कई तरह का तर्क दे रहे थे। कुछ लोग घटनाओं की तह में पहुंचकर बहुत कुछ दावा भी करने लगे। मैं इस घटना पर और कुछ लिखूं या कयास लगाऊं उससे पहले दो तीन प्रमुख बातों की याद दिलाना जरुरी समझ रहा हूं। सभी मामले इसी साल के हैं और सबके तार आपस में एक दूसरे से जुडे हुये हैं।

  सबसे पहले यूनुस अंसारी की गिरफ़तारी की चर्चा जरूरी है। नेपाल में राजा ज्ञानेन्‍द्र वीर विक्रम शाह के शासन में मंत्री रहे सलीम मियां अंसारी के बदनाम बेटे और मीडया के क्षेत्र में पैर जमा चुके आईएसआई परस्‍त, जाली नोटों के कारोबारी और दाऊद के खास सहयोगी यूनुस अंसारी की 1 जनवरी 2010 को गिरफ़तारी हुई। यूनुस के साथ दो पाकिस्‍तानी नागरिक और लगभग 25 लाख भारतीय जाली नोट भी पकडा गया। इस घटना के बाद भारत में बडे पैमाने पर जाली नोटों के धंधों का खुलासा हुआ और विभिन्‍न शहरों से लोग पकडे गये। इस मामले के कुछ दिन बाद नेपाल में सन्‍नाटा छा गया और लोग यूनुस अंसारी की चर्चा करना भूल गये। पर यह सब कुछ तूफान आने से पहले की खामोशी थी।

 सात फरवरी को नेपाल के मीडिया मुगल, दाऊद के सहयोगी और जाली नोटों के धंधे में अरसे से लिप्‍त जमीम शाह को काठमाण्‍डू में गोलियों से भून दिया गया। नेपाल के एक पूर्व नौकरशाह के पुत्र जमीम शाह ने अम्बिका प्रधान से प्रेम विवाह किया था। अम्बिका नेपाल में एफ एम चैनल की शुरुआत करने वाले प्रसन्‍न मानचिंग प्रधान की बेटी हैं। मीडिया के क्षेत्र में अपनी ससुराल के लोगों का प्रभाव देखकर ही जमीम ने अपना दांव लगाया। लोग कहते हैं कि बाद में दाऊद इब्राहिम ने साढे चार करोड रुपये की पूंजी लगाकर रातों रात जमीम शाह का प्रभाव बढा दिया और नेपाली मीडिया में स्‍पेस टाइम्‍स का वर्चस्‍व हो गया। इस समय स्‍पेस टाइम्‍स ग्रुप का कारोबार 500 करोड रुपये का है।

 जमीम की हत्‍या के बाद 15 फरवरी को काठमाण्‍डू के एआईजी मदन खडका ने जमीम शाह मर्डर का खुलासा किया। उन्‍होंने बताया कि बरेली जेल में बंद डान बबलू ने भरत नेपाली, दीपक शाही उर्फ बबलू और अन्‍य कई लोगों के साथ मिलकर इस मामले की साजिश रची। नेपाल के कई मंत्रियों ने इस मामले को अन्‍तर्राष्‍ट्रीय साजिश करार दिया। इस खुलासे के बाद नेपाल में मामले पर बहुत कुछ खास चर्चा नहीं हो रही थी। इस बीच 2 मार्च की शाम को होली मनाकर लौट रहे भारतीय मूल के मीडियामैन जनकपुर टुडे के प्रकाशक अरुण सिंघानियां की गोली मारकर हत्‍या कर दी गयी।

 दरअसल अरुण सिंघानिया की हत्‍या के बाद मुझसे कुछ लोग जो सवाल कर रहे थे वह मेरी लिखी तीन चार खबरों की वजह से है।  जब जमीम शाह की हत्‍या हुई तो अगले ही दिन- यूनुस ने खत्‍म करा दिया जमीम का खेल, प्रकाशित हुई। मेरे सूत्रों ने बताया था कि जमीम की हत्‍या के पीछे मुख्‍य भूमिका यूनुस अंसारी की है और इस मामले में कई भारतीय डान लगे हैं। शुरु में छोटा राजन और भरत नेपाली का नाम आया। इसके कुछ घण्‍टे बाद बबलू का भी नाम मुझे बताया गया। पहले तो मुझे लगा कि बडबोले बबलू ने यह झूठ बोला लेकिन कयास लगाते हुये और यह आशंका जाहिर करते हुये 9 फरवरी को ही मैंने मामले में बबलू का नाम शामिल करते हुये एक रपट लिखी। उस समय तक नेपाल की मीडिया या भारतीय मीडिया में बबलू के नाम की चर्चा नहीं थी। 15 फरवरी को जब नेपाल के एआईजी मदन खडका ने पूरे मामले में बबलू का ही नाम शामिल किया तब मुझे उन सूत्रों की याद आयी जिन लोगों का कहना था कि बबलू ने एक करोड रुपये के लिए यूनुस अंसारी से यह डील की। जहां तक भरत नेपाली की बात है तो वह सेना से स्‍वैच्छिक अवकाश लेकर छोटा राजन के लिए काम करता है। भगवंत सिंह उर्फ भरत नेपाली के अलावा यूपी मूल के दीपक शाही उर्फ बबलू सिंह समेत और कई नाम सामने आये। मामले का दूसरा पक्ष यहीं से शुरू होता है। जैसे सियासत में रिश्‍ते बदलते रहते हैं उसी तरह अपराधियों की कौम कभी रिश्‍ते नहीं पहचानती हैं। होंगे कुछ लोग जो समझते होंगे कि जमीम और यूनुस जब एक ही मिशन के लिए काम करते हैं तो उनके बीच कैसी दुश्‍मनी लेकिन इसके उदाहरण तो सैकडों पडे हैं कि एक ही पार्टी के लिए काम करने वाले लोग भी आपस में एक दूसरे को फूटी आंखों देखना नहीं चाहते। दरअसल आईएसआई, नेपाल के पाक दूतावास और दाऊद की नजर में सर्वाधिक महत्‍व हासिल करने की चाह ने ही यूनुस को जमीम का प्रतिद्वंदी बना दिया। यूनुस ने मीडिया के क्षेत्र में जमीम का प्रभाव देखकर ही कदम रखा। जमीम के चलते कारोबार में उसका वह स्‍थान नहीं बन रहा था जिसकी उसे चाह रही। जैसाकि यह बात सामने आयी कि अपनी राह का कांटा हटाने के लिए ही यूनुस ने जमीम का खेल खत्‍म करा दिया।

 अब सबसे महत्‍वपूर्ण और आखिरी बात। बात यह कि 20 फरवरी के अंक में मेरी एक रपट बहुत प्रमुखता से छपी। डान की जान खतरे में। जी हां, इसी शीर्षक से छपी खबर में नेपाल के मापिफयाओं और पाक परस्‍त तथा आईएसआई से जुडे लोगों के बीच मची खलबली और प्रतिशोध में बबलू और उससे जुडे लोगों पर हमले की तैयारी का जिक्र किया था। इस रपट को लोगों ने खूब मन से पढा और मुझसे कई सवाल जवाब हुये। मंगलवार से ही भाई लोग पूछ रहे हैं कि क्‍या अरुण सिंघानियां बबलू के मददगार थे। एक सज्‍जन ने  दिल्‍ली में एमबीए कर रहे संघानियां के पुत्र राहुल से बात कराने का प्रयास किया लेकिन बात नहीं हो पायी। नेपाल के एक मित्र ने इस पर अपने देश का ही नजरिया रखा। यह भी पता चला कि अरुण सिंघानियां के यहां काम करने वाली उमा नाम की कोई महिला पिछले साल रहस्‍यमय हालत में मारी गयी थी। उनके आपसी विवाद का भी कुछ लोगों ने जिक्र किया लेकिन मेरे एक साथी ने यह सवाल उठाया कि कहीं अरुण सिंघानियां बौखलाये हुये लोगों के  तो शिकार नहीं हैं। अब यह बात इसलिए भी कि नेपाल की आपराधिक गतिविधियों में लिप्‍त और दाऊद खेमे से प्रभावित लोग जमीम की हत्‍या में यूनुस की भूमिका से इंकार करते हैं। ऐसा इसलिए कि उन सभी के मन में यह बात भर दी गयी कि भारत के प्रति सद़भावना रखने वाले लोग हमारे खिलाफ हैं और एक एक करके हमारी जडों पर हमला बोला जा रहा है। इसके पीछे 29 जून 1998 को काठमाण्‍डू में मारे गये नेपाल के पूर्व मंत्री मिर्जा दिलशाद बेग से लेकर 6 अक्‍टूबर 2009 को नेपालगंज में मारे गये डान माजिद मनिहार और 25 दिसम्‍बर को बुटवल में मारे गये डान परवेज टाण्‍डा की मौत को भी जोडा जा रहा है। सभी हत्‍याओं को रॉ, आईबी, यूपी एटीएस और भारतीय मूल के मधेशियों या उनकी आर्मी के मत्‍थे मढ रहे हैं। नेपाल की पुलिस अपने हित के लिए और इण्‍टरनल गैंगवार रोकने की मंशा से इसी बात को प्रचारित करने में जुटी है। तो क्‍या  मीडिया के क्षेत्र में प्रभावी कदम बढा रहे भारतीय मूल के अरुण सिंघानियां इसी मानिसकता के शिकार हो गये। वर्चस्‍व और नफरत के लिए किसी ने अरुण की जान ले ली या पिफर वे अपने किसी निजी विवाद की वजह से मारे गये। जागरण जंक्‍शन के इस ब्‍लाग को नेपाल के मेरे कई साथी पढते हैं और समय समय पर उनका गोपनीय मेल भी मुझे मिलता है। मैं अपने उन मित्रों का आभारी हूं। अरुण सिंघानियां की मौत के पीछे कि असली सच्‍चाई के लिए उन सबकी सूचनाओं का मुझे इंतजार है। मैं चाहता हूं कि जैसे जमीम और यूनुस वाले मामले की सच्‍चाई मेरे पास तक आयी वैसे ही अरुण सिंघानियां का भी सच सामने आये। दैनिक जागरण दुनिया का सबसे बडा अखबार है। इसके पाठकों की सबसे बडी संख्‍या है इसीलिए मैंने सार्वजनिक तौर पर आहवान किया है। अब और बातें तो बाद में लेकिन कहीं न कहीं कुछ न कुछ तो है। देर सवेर मामले का खुलासा होगा ही। पर यह सवाल तो है ही कि नेपाल के मीडिया मुगलों पर आखिर फंदा क्‍यों कस रहा है। क्‍या मीडिया के क्षेत्र में भी कोई इण्‍टरनल गैंगवार चल रही है।

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