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सियासी जंग में खून का सिलसिला बड़ा पुराना

अनुभूति
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लखनऊ: यूपी में सियासी जंग में खून बहने का सिलसिला बड़ा पुराना है। वर्चस्व की लड़ाई और जर-जमीन के चक्कर में यहां कई जनप्रतिनिधि अपनी जान गंवा चुके हैं। जनप्रतिनिधियों के खून से यूपी पुलिस की डायरी रंगी पड़ी है। सूबे के मंत्री नंद गोपाल गुप्ता नंदी के ऊपर हुए जानलेवा हमले के बाद यह रंग और गाढ़ा हो गया है।
इसी 4 जुलाई को मऊ जिले के पूर्व विधायक कपिलदेव यादव को उनके दुश्मनों ने सरेबाजार गोलियों से छलनी कर दिया। इस मामले में 2002 में बसपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ चुके पूर्व प्रमुख मनोज राय को पुलिस ने हत्या के षडयंत्र का आरोपी बनाया। कपिलदेव यादव के खून के छींटे अभी सूखे भी नहीं कि इलाहाबाद में सूबे की सरकार के मंत्री नंदी पर भी जानलेवा हमला हो गया। सियासत में खूनी खेल तो पता नहीं कबसे चल रहा है लेकिन यूपी में इसकी आहट 1979 में महसूस की गयी जब गोरखपुर जिले के कौड़ीराम विधानसभा क्षेत्र से जनता पार्टी के विधायक रवीन्द्र सिंह को अल सुबह रेलवे स्टेशन पर गोलियों से भून दिया गया। वे लखनऊ में सदन की कार्रवाई में हिस्सा लेने आ रहे थे। जाति और जिद की जंग में रवीन्द्र सिंह की जान जाने के बाद पूर्वी उत्तर प्रदेश में हत्याओं का दौर शुरू हो गया।
1988में देवरिया जिले की गौरीबाजार विधान सभा क्षेत्र के विधायक रणजीत सिंह की हत्या कर दी गयी। यह हत्या क्षेत्र जवार की आपसी दुश्मनी और पट्टीदारों से वर्चस्व की लड़ाई का नतीजा थी। इस घटना के अरसे बाद गोरखपुर में फिर अपराधियों के असलहे लहरा उठे। 25 मार्च 1996 को मानीराम के विधायक ओमप्रकाश पासवान को बांसगांव की एक सभा में उनके दुश्मनों ने बम से उड़ा दिया। इस घटना में पासवान के साथ दर्जन भर लोगों की जान गयी। पासवान की हत्या के ठीक एक साल बाद जरायम की दुनिया में उभरे नये शूरमा श्रीप्रकाश शुक्ला और उसके साथियों ने 30 मार्च 1997 को लखनऊ में पूर्व विधायक वीरेन्द्र प्रताप शाही को गोलियों से छलनी कर दिया। गोरखपुर जिले के सहजनवा विधान सभा क्षेत्र के विधायक और रामनरेश यादव की सरकार में मंत्री रहे शारदा प्रसाद रावत की हत्या 8 सितम्बर 1991 को कर दी गयी। यह हत्या भी वर्चस्व की लड़ाई का नतीजा थी। रावत की हत्या के 18 साल बाद उनके विधायक पुत्र यशपाल रावत ने जेल से छूटे हुए हत्यारे को मौत की सजा दे दी। यशपाल अब सलाखों के पीछे हैं। सियासतदारों की हत्याओं की फेहरिश्त वाकई बहुत लम्बी है। 2002 में मार्च के पहले हफ्ते में लखनऊ में विधानसभा के सामने ही विधायक मंसूर अहमद की हत्या कर दी गयी। कानून व्यवस्था को धता बताने वाली इस हत्या से तत्कालीन सरकार की खूब किरकिरी हुई।
भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री ब्रहमदत्त द्विवेदी को 1998 फर्रुखाबाद में दुश्मनों की गोलियों का निशाना बनना पड़ा। हमले में उनके शैडो बृजकिशोर तिवारी को भी जान गंवानी पड़ी। इस मामले में साक्षी महराज से लेकर कई नामचीन लोग आरोपों की परिधि से घिर गये। वर्ष 1991 में दादरी के विधायक महेन्द्र सिंह भाटी की हत्या यूपी में प्रतिबंधित स्वचालित हथियारों के प्रयोग का पहला उदाहरण बनी। भाटी की हत्या से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक नये आपराधिक राजनीतिक समीकरण का श्रीगणेश हुआ। सुल्तानपुर जिले के इसौली विधानसभा क्षेत्र के विधायक इन्द्रभद्र सिंह भी अपराधियों की गोलियों का निशाना बने। उनकी हत्या के प्रतिशोध में उनके पुत्र और विधायक चन्द्रभद्र सिंह ने संत ज्ञानेश्वर और उनके अनुयायियों की हत्या कर बदला लिया।
लखनऊ में एक जमीन के विवाद में पूर्व मंत्री लक्ष्मीशंकर यादव को भी जान से हाथ धोना पड़ा। उन्हें मारने वालों में पूर्व मंत्री और विधायक अंगद यादव का भी नाम सामने आया।25 जुलाई 2001 को सांसद और पूर्व दस्यु सुंदरी फूलन देवी की हत्या दिल्ली में कर दी गयी। इस हत्या के आरोप में उत्तरांचल का एक युवक पकड़ा गया लेकिन इसे हाई प्रोफाइल षडयंत्र का नतीजा बताया गया। कोयले के काले कारोबार में 21 जून 2005 को पूर्व सांसद लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी की भी हत्या कर दी गयी। इस मामले में पूर्व मंत्री मार्कण्डेय चंद और उनके पुत्र सीपी चंद समेत कई लोगों पर इस मामले में मुकदमा दर्ज हुआ। 26 जनवरी 2005 को इलाहाबाद में विधायक राजू पाल की हत्या से सनसनी फैल गयी। इस मामले में सांसद अतीक अहमद और उनके भाई का नाम सामने आया। राजू पाल की हत्या की चर्चा थमी नहीं कि 29 नवम्बर 2005 को गाजीपुर जिले के मुहम्मदाबाद के विधायक कृष्णानंद राय की हत्या कर दी गयी। हाई प्रोफाइल इस हत्या में विधायक मुख्तार अंसारी और सांसद अफजाल अंसारी समेत कुख्यात शूटर मुन्ना बजरंगी का नाम उछला। इलाहाबाद में वर्ष 2006 में बारा के पूर्व विधायक रमाकांत मिश्र की हत्‍या कर दी गयी जबकि इसी जिले में बीस साल पहले विधायक जवाहर पण्डित की भी हत्‍या कर दी गयी।

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