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यूं ही नहीं है विद्रोहिणी का यह सम्‍मान

अनुभूति
अनुभूति
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जन्‍म से लेकर मरण तक फूलन देवी का जीवन सुर्ख, स्‍याह और चटख रंगों से भरा पड़ा है। गोलियों से लेकर गालियों तक की बौछार करने वाली फूलन देवी को लेकर दो पक्ष हैं। कुछ लोग उसे कानून का उल्‍लंघन करने वाली बेरहम महिला के रूप में देखते हैं, मगर कुछ लोग उसके साथ हुई जुल्‍म और ज्‍यादती को उसके इस मुकाम तक पहुंचने की वजह बताते हैं। पर एक बात तो जरूर है कि न्‍याय न मिल पाने की वजह से फूलन ने यह रुख अख्तियार किया और उसके नाम की दहशत से चंबल थर्रा उठा।

  पहले सामंती अत्याचार की शिकार, फिर दस्यु संदरी, फिर सांसद और अब टाइम मैगजीन ने उन्हें विश्व की सोलह विद्रोही महिलाओं में एक की संज्ञा दी। किसी अविश्वसनीय कथा नायिका सा जीवन गुजारने वाली फूलन देवी को इस नये सम्मान ने उन्हें और उनके संघर्षमय जीवन को फिर चर्चा में ला खड़ा किया है। यह सम्मान फूलनदेवी की उस जीवटता का सम्मान है जिसने उसे न सिर्फ सामंतों से लडऩे के लिए प्रेरित किया बल्कि अन्याय व अत्याचार के प्रतिकार की ताकत भी दी।
बचपन से ही सामाजिक रूढिय़ों का विरोध : जब भी जुल्म और ज्यादती के किस्से सामने आयेंगे तो दस जुलाई 1963 को जालौन जिले के कालपी क्षेत्र के शेखपुर गुढ़ा गांव में जन्मी फूलन का नाम जेहन में गूंज उठेगा। छोटी उम्र में कानपुर देहात के बेहमई गांव में उसकी शादी हो गयी। 11 साल की उम्र में बेरहम पति ने बेइंतहा जुल्म ढाये। फिर भी ससुराल में कुएं पर पानी भरने को लेकर ऊंची जाति के लोगों से भिडऩे में उसे तनिक भी संकोच न रहा। पति व सास ने पीटा मगर सामंतों से वह जमकर भिड़ी। हालांकि इसकी कीमत उसे और बड़े अत्याचार के रूप में चुकानी पड़ी। एक दिन बेहमई गांव में फूलन को निर्वस्त्र कर सबके सामने घुमाया गया और उसके साथ सामूहिक बलात्कार हुआ।
बीहड़ और बंदूक : इस घटना ने ही फूलन के विद्रोही तेवर को और मजबूत किया। उसने चंबल के बीहड़ों की राह पकड़ी और दस्यु विक्रम मल्लाह, दस्यु मानसिंह के संरक्षण में बंदूकों से खेलना शुरू कर दिया। यह था दस्यु सुंदरी फूलनदेवी का जन्म। 14 फरवरी 1981 को उसने खुद पर अत्याचार करने वाले 21 लोगों को एक कतार में खड़ा कर गोलियों से भून दिया।
दस्यु सुंदरी से सांसद : 12 फरवरी 1983 को फूलन ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के चरणों में बंदूक रखकर हजारों की भीड़ में अपने साथियों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया। फूलन 11 साल तक जेल में रहीं। 1994 में प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने उनका मुकदमा वापस लेकर उन्हें रिहा कर दिया।अब एक नया संघर्ष उनकी प्रतीक्षा कर रहा था। अपने समुदाय को लोगों को अधिकार दिलाने का संघर्ष। फूलन ने एकलव्य सेना बनायी और राजनीति के मैदान में कूद पड़ी। 1996 में भदोही संसदीय क्षेत्र से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में फूलन चुनाव जीती। 1998 के चुनाव में उन्हें भाजपा के वीरेन्द्र सिंह मस्त ने पराजित किया लेकिन 1999 में वह फिर लोकसभा के लिए निर्वाचित हुई।
बैंडिट क्वीन का आखिरी सफर : इसके पूर्व शेखर कपूर ने उनके जीवन पर ‘बैंडिट क्वीनÓ नाम से फिल्म  बनाकर उन्हें रातोरात दुनिया भर में मशहूर कर दिया। 25 जुलाई 2001 को शेर सिंह राणा ने दिल्ली में उनके निवास पर ही गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। लेकिन उसके बाद से भी एकलव्य सेना का निषादों के लिए संघर्ष जारी है। अधिकारों के लिए किए जाने वाला यह संघर्ष फूलन के ही नाम पर है।

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